बचपन में सुना था" तोलो फिर बोलो, दूसरे की जगह खुद को रखो महसूस करो -उसके दर्द को, खुशी नहीं दे सकते तो ;दुख न दो" तोलने और महसूस करने में गुजरता गया वक्त धीरे -धीरे लोग आगे निकल गये, कुछ रिश्ते टूट गये , कुछ दोस्त बिछड़ गये, सोचे हुए उत्तर ; मन में बसाये ! बस, यही समझात रहा और ! मैंने थोड़ी देर कर दी चाहता तो कुछ कर दिखाता वो जाते रहे,मैं देखता रहा चाहते थे हाथ पकड़ रोकूँ उसे पर !मैंने थोड़ी देर कर दी वो रोते रहे, मैं रूमाल ढूंढता रहा-- चाह रहे थे-" आगोश में लूँ उसे" पर ! मैंने थोड़ी देर कर दी आज महफिल सजाई है, बिछड़े यारों की ! कहने को "बस अब देर नहीं करनी"!!!!