कहते सुना है ब्रह्मा और विष्णु को मैं दुर्गा का वर्णन नहीं कर सकता पर आज कह देता हूं मैं अपनी मां का वर्णन नहीं कर सकता कितनी छली जाती है बेचारी मेरे लिए इस दुनिया से फिर भी बदले में किसी से छल नहीं करती है मेरी मां कभी कभी मुझसे भी चली जाती है पर एक माफी पर गले से लगाती है मेरी मां है क्या किसी ईश्वर में इतना धैर्य जितना कि दिखाती है मेरी मां है क्या किसी शब्दकोश में इतना सामर्थ की मां की परिभाषा को लिख सके ना ही किसी की बद्दुआ में है इतना असर है कि मां की दुआ को मिटा सके छा जाएं दुखों के बादल क्यों ना एक बार मां को याद कर लेना हर हर बद्दुआ छूमंतर सी हो जाएगी।।