आज़ाद कैदी की कहानी (Story of a freed prisoner)

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लोहे की सर्द पटरियों में पंजाब मेल दौड़ी चली जा रही थी। शम्भूनाथ दरवाज़े के पास ज़मीन में बैठा, बाहर की और ताके जा रहा था, मानो सदियों बाद ज़मीन को देख रहा हो। अचानक ट्रैन के हॉर्न ने शंभुनाथ का ध्यान खींचा।
तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी,
"ए पागल पीछे हट, हमें उतरना है।"
पहले तो शंभुनाथ ने हैरानी से उस आदमी को देखा और पूछा।
"भैया , यह कौन सा स्टेशन है।"
"अबे, सुना नहीं तूने चल पीछे हट।"
उस आदमी के धक्के से शंभुनाथ स्टेशन में जा गिरा।और सभी सवारियां उसको रौंदते हुए उतरने लगीं।
किसी तरह अपनी जान बचाकर ज्यों ही वह पीछे मुड़ा एक ज़ोर का मुक्का उसकी पीढ़ में पड़ा।
"अबे कंजड़! कहाँ टहल रहा है, यह तेरे बाप का घर नहीं स्टेशन है। चल भाग यहाँ से नहीं तो मार-मार के भूत बना दूंगा।"
शम्भू के पास वहां से भागने से सिवा और कोई चारा न था।
स्टेशन में अनाउंसमेंट होने लगा, “यात्रीगण कृपया ध्यान दें पंजाब मेल दतिया स्टेशन पर आ चुकी है।”
तभी किसी ने चिल्लाया, “अरे शम्बू बाबू रुको!”
लेकिन एक आदमी को अपनी ओर आता देख शम्भु भागने लगा। मगर जल्द ही शम्भू को उस आदमी ने पकड़ लिया।
कुंदन: " अरे! शम्बू बाबू यह क्या हाल बना रखा है और आगरा से कब आये।"
शम्बू: "तुम कौन?"
कुंदन:" मुझे नहीं पहचाना। मैं कुंदन, मैं तुम्हारा मिलाज़िम था।
शम्बू: "अब तो सब चेहरे एक जैसे लगते हैं। सारी आवाज़ें शोर बनके कानों में चुभतीं हैं।"
कुंदन: "अरे बाबू, कैसी बातें कर रहे हो चलो मेरे साथ।"
दोनों लोग एक पतली गली से होकर शहर की ओर बढ़ने लगे।
शाम का वक़्त हो चला था और लाल सूरज दूर पहाड़ो में डूब रहा था। जैसे ही दोनों शहर के अंदर दाखिल हुए, बच्चों का एक झुण्ड शम्भू को पत्थर मरते हुए चिल्लाने लगा,
"पागल, पागल ! ओये पगले!  ले गोबर खा ले।"
कुंदन ने उन्हें मरकर भगाते हुए कहा,
"अगर तेरा बाप पागल हो जाये तो कैसा लगेगा।"
दोनों एक पुराने मकान में पहुंचे।
कुंदन: " ओ, सोमू की अम्मा,  तनिक देख तो कौन आया है।"
शोभा: " क्यों चिल्ला रहे हो, कौन है भला।"
"यह कौन है"
कुंदन: "अरे यह शंभू बाबू हैं। जहाँ में पहले काम करता था, याद करो।"
"इस पागल को यहाँ क्यों लाये हो", शोभा ने त्योरियां चढ़ा कर कहा।
"अरी भगवान, क्या कह रही हो।",कुंदन ने शोभा को एक कोने में ले जाकर कहा। 
कुंदन: " क्या मुझे बेवक़ूफ़ समझी हो, जो मैं इस पागल को अपने घर में लाता। भूल गयीं यह करोड़ों की जायदाद का इकलौता मालिक है। आज इस गधे को बाप बन लें तो हमारी सात पुश्तें दौलत में खेलेंगी।"
इस बात को सुनकर शोभा ने खुद को संभाला और शम्भु के पास जाकर बोली,
"अरे शम्भू बाबू, बुरा मत मानिये, मुझे किसी और का धोका हो गया था।"
"चलके नहा धो लो तो मैं आपके लिए खाना परोस देती हूँ।"
देर रात तक शम्बूनाथ आंगन में बैठा हुआ तारों को देखता रहा।
कुंदन, शम्भू के पास आकर बोला, "क्या शम्भू बाबू, सोये नहीं अभी तक"
शम्भू: "आज सदियों के बाद खुले आसमान के नीचे बैठकर तारों को देख रहा हूँ। उन खून और पस से भरे कमरों में कैदिओं की चीखों के सिवा और कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती।"
"वह कोई और दुनिया है कुंदन, जो मुझे अब भी बुला रही है और कह रही है कि शम्भू तू कभी आज़ाद नहीं हो सकता।"
"कुंदन क्या मैं इतना बदनसीब हूँ जो अपने घर को जलाके भी ज़िंदा है। "
कुंदन: "नहीं नहीं शम्भू बाबू, वह एक हादसा था, आप अपने होश में नहीं थे।"
"अब छोड़ो उन बातों को, अतीत को कुरेदने से वह वापस नहीं लौटता, बल्कि एक नासूर बनके रह जाता है।"
शम्भू, " मैं अपनी सारी ज़मीन जायदाद अनाथाश्रम के नाम करना चाहता हूँ, शायद यही मेरी मुक्ति का कारण बने।
कुंदन, "अगर आपकी ऐसी ही मर्ज़ी है तो, ठीक है मैं कल कागज़ तैयार करवाता हूँ, अब आप सो जाओ"
आगे दिन कुंदन ने वसीयत  के कागज़ बनवा लिए, रात होते ही, शम्भु के सामने कागज़ रखकर बोला।
कुंदन, "यह रहे आपके कागज़, आपको बस तीन जगह दस्तखत करने हैं।"
वसीयत के कागज़ पर दस्तखत करके शम्भु कमरे में सोने चला गया।
कुंदन धीरे से अपनी पत्नी से फुसफुसाते हुए बोला,
तुमने पूरा इंतज़ाम कर दिया है न, मिटटी के तेल की बोतल और माचिस शम्भू के कमरे में रख दी हैं न।
शोभा," तुम अपनी बताओ, कागज़ में उस पागल के दस्तखत ले लिए हैं न। मैं अपना काम कभी अधूरा नहीं छोड़ती।"
तभी शम्भू के कमरे से आग के लपटे उठने लगीं, और जैसा अंदेशा था ठीक वैसा ही हुआ,
शम्भू ने खुद पर केरोसिन डालकर ख़ुदकुशी कर ली।
जहाँ सारा मोहल्ला इस भयानक आग को बुझाने में जुटा था। वहीँ कुंदन और उसकी पत्नी शोभा आपने घड़ियाली आंसुओं के पीछे करोड़पति बनने की ख़ुशी छुपाने की कोशिश कर रहे थे।





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