Shayari

72 10 15
                                    

मखमली रात थी
दिल में उसकी याद थी
ना अंधेरे का डर था
ना सुबह होने की जल्दी
फिर भी बेचैनी सी छाई थी कि
नजाने अगली मुलाक़ात कब होगी?

सोचती थी कि जब वो आएगा
तो कैसा समा होगा
फूलो की बहार होगी
या हवाएँ रूख बदल देंगी?

पर जब वो सामने आया
ना फूलो की बारिश हुई
ना हवा तेज़ हुई
लेकिन इस दिल का हाल कुछ यू था
के उसके सामने ख़ुदा हैं

बात करने कि चाह थी
पर था तो यह दिल शर्मीला
जब हुई बात उससे तो लगा
क्या है इसके बिना जीना?

मगर ऐसा आया एक पल
जब लगा कि यह बस एक ख़ाब हैं
जिसका ना सपनो में जगा है
ना असल ज़िंदगी में

पर कमबख़्त यह दिल
मानने को था ना तैयार
कहा की इस ख़ाब ने
नयी ज़िंदगी दी है
जो दूर हो कर या पास
ना होगा कमज़ोर

जिस प्यार ने नयी ज़िंदगी दी हो
वो कभी अधूरा ना होगा,
इसका भरोसा दिल को था
जब दिमाग ने ठन ली थी
की यही हाई हमारा अंत

अब जो होगा वो
ना मुझे पता ना उसको
लेकिन इस दिल का कहना हैं
की हम मिलेंगे ज़रूर
शायद इस दुनिया में
या कही और

मखमली रात थी
दिल में उसकी याद थी
ना अंधेरे का डर था
ना सुबह होने की जल्दी
फिर भी बेचैनी सी थी
नजाने उससे अगली मुलाक़ात कब होगी?

A book of poems and stuffWhere stories live. Discover now