हस्तिनापुर में बाहूबली

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देवसेना की गोदभराई में शिवगामी द्वारा तिरस्कार कर दिए जाने के कारण बाहुबली का मन अव्यवस्थित था| अपने मन की शान्ति हेतु वह मध्यरात्री भ्रमण करने वन गया| एकाएक उसने देखा की वन के दक्षिणी ओर से तेज प्रकाश आ रहा था| वहाँ राक्षसों का खतरा हो सकता था, यह सोचकर वह उस प्रकाश की ओर तेजी से बढ़ने लगा| परन्तु वहाँ पहुँचकर उसने जो देखा उसे देखकर वह अवाक रह गया| उसने देखा की वहाँ एक प्रकाश-बिंब था जो उसके चारों ओर घूमने लगा और फिर वन के पूर्वी भाग की ओर बढ़ने लगा| बाहुबली को ऐसा लगा की जैसे वह बिंब उसे अपने पीछे आने का इशारा कर रहा हो| वह उसके पीछे-पीछे चल दिया| वह प्रकाश-बिंब उसे एक गुफा के अंदर ले गया| उसने जैसे ही गुफा के अंदर पैर रखा, उसने स्वयं को एक अलग दुनिया में पाया| एक वृद्ध व्यक्ति बाहुबली का स्वागत करते हुए कहता है- " आपका हस्तिनापुर में स्वागत है| माहिष्मती में जो कुछ घटित हो रहा है, उसका ज्ञान है मुझे| आपने देशाटन करके अपनी प्रजा को समीप से समझ लिया है, परन्तु समाज का एक वर्ग ऐसा है जिस पर आपकी दृष्टि नहीं गई है| एक कुशल राजा बनने से पूर्व आपको उस वर्ग को अलग से समझना होगा| इसके लिए आप महल जाइए और अभी तक हुए सबसे लांछित कार्य को समीप से देखिए|" उसने उसे कमल-पुष्प का रस पीने के लिए दिया और फिर बाहुबली को राजभवन भेज दिया|

वह राजमहल की ओर बढ़ने लगा| उसे आश्चर्य हो रहा था की भीतर प्रवेश करते समय किसी भी द्वारपाल ने भीतर जाने से नहीं रोका| उसने देखा की एक व्यक्ति किसी स्त्री को उसके बालों से पकड़कर, घसीटता हुए उसे राजसभा में ले आ रहा था| इसके पश्चात वह समझ गया कि अब आगे क्या होने वाला था| इससे पहले की कुछ अनर्थ हो जाता, उसने दुश्शासन को ललकारा और द्वारपाल से उसकी तलवार लेने का प्रयत्न किया, परन्तु उसका हाथ तलवार के आरपार हो गया| उसे शीघ्र ही आभास हो गया की न तो उसे कोई देख सकता है न कोई सुन सकता है| उस सभा में द्रौपदी अपने साथ हुए अन्याय के विरुद्ध चीखती रही, चिल्लाती रही परन्तु किसी गांडीवधारी ने धनुष नही उठाया| बाहूबली का मन उस अधर्म सभा में उपास्थित सभी पुरुषों के प्रति जुगुप्सा से भर गया| द्रौपदी की मदद न कर पाने के कारण उसे स्वयं से घृणा होने लगी, वह असहाय महसूस करने लगा| द्रौपदी गोविन्द-गोविन्द कहते-कहते अपनी जगह पर खड़ी रही, और कुछ ही देर में एक लम्बे वस्त्र ने उसे घेर लिया| लीला समाप्त होने के पश्चात जैसे ही उसने अपने नेत्र खोले, एक तेज प्रकाश उसकी आँखों से निकला| वह प्रकाश इतना अधिक था की बाहूबली अपनी आँखें खोले रखने में असमर्थ था| जैसे ही उसने अपने नेत्र पुनः खोले उसने स्वयं को माहिष्मती में पाया|

उस दैवीय लीला ने द्रौपदी की रक्षा कर ली परन्तु बाहूबली ने उस दिन प्रण लिया कि स्त्री के आँचल पर हाथ डालने वाले हर व्यक्ति का उसकी तलवार गला काट देगी|        

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