इस बात को सात साल हो गए । हाल ही में में अपनी कुछ पुरानी किताबे देख रहा था तभी मुझे मेरी एक पुरानी किताब में से मुझे उसी डायरी के कुछ पन्ने मिले । पता नही यह पन्ने कैसे बच गए पर मुजे इस समय में से अपने स्कूल के दिनों में ले गए और उन दिनों को मैंने फिर से जिया । डायरी के मिले इन पन्नो पर जो घटना लिखी गई थी मेरे हाथो वह भी मजेदार है और जिस डर के कारण मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त से रिश्ता तोड़ लिया था , आज उसी डर पर विजय प्राप्त करते हुए उन सारे पन्नों को आप सभी के सामने उजागर कर रहा हु ताकी अपनी डायरी के साथ जो गलत किया था उसे सुधार सकू।
बात तब की है जब मैं 8वी क्लास में उदयगिरि हाउस में बतौर वाईस कप्तान के पद पर बी विंग मैं रहता था । 8वी के मध्य में मेरे सारे वर्ग के विधार्थी दोस्त N.C.C . केम्प में लाखाबावल गए हुए थे । में और मेरे कुछ ही दोस्त उस कैम्प में नही गए थे और वो भी दूसरे हाउस के थे । में उन दिनों अपने आप में मस्त मगन रहने वाला लड़का था और थोड़ा सा पढ़ाकू भी था ।
उस दिन रविवार था । बाकी रविवार की तरह यह रविवार थोड़ा बोरिंग था क्योंकि रविवार के दिन हम क्रिकेट खेलने का लुत्फ उठाते थे पर उस दिन अकेले होने के वजह से रूम पर ही अपनी कहानियों की बुक पढ़ी । दुपहर के बाद मेस में टी .वी .देखी और इस तरह मेरा बोरिंग संडे बिता । शाम के डिनर में रविवार होने के कारण कढ़ी खिचड़ी थी जो हर नवोदयन को बिल्कुल पसंद नही होती है मुझे भी खिचड़ी खानी नही थी , पर उस दिन सामने वाली मेस में मेरे क्रश की ड्यूटी थी तो उसे निहारने के लिए आखिर तक बैठा और तब जाके दिल को यह तस्सली हुई के संडे अच्छा गया । डिनर के बाद में अपने हाउस गया । प्रसाद मैडम का होमवर्क किया बीच में सागठिया सर अटेंडेंस लेने आये उनको अटेंडेंस देकर फिर केशव पंडित की क्राइम थ्रिलर नॉवेल पढ़ने बैठा । में उस में इतना मशगूल हो गया कि जब सोने का सायरन बजा तब समय का पता चला कि 11 बज गए है । गब्बर के आने का टाइम हो गया था मैंने जल्दी जल्दी लाइट स्विच ऑफ की और अपने बिस्तर में घुस गया तभी गब्बर के बाइक की आवाज आई ओर जिनकी लाइट चालू थी उन्हें उनके मुख के अश्लिल श्लोक सुनने पड़े । ऐसा लगता था कि उन्होंने कहीं से गालियो की क्लासिस कि हुई है । जब गब्बर चला गया तब मैंने फिरसे लाइट ऑन की और फिरसे नॉवेल पढ़ने बैठने ही वाला था कि मेरे सामने खुराफाती कि दुकान पिंकू प्रगट हो गया । उस समय यह मेरा दोस्त कम क्लासमेट ज्यादा था । मै कुछ बोलू उससे पहली ही वह बोला "ओये ठंडी शु करश ?"( ओए ठंडी क्या कर रहा है? ) मुझे इस नाम से चिढ़ थी और गुस्सा भी आया पर मैंने शांत रहने का दिखावा किया । फिर उसनें कुछ औपचारिक बाते की और मेरी तांग भी खेंची । मुझे अपनी नॉवेल पूरी करनी थी तो मैं उसे जाने के लिए बोलने ही वाला था उसने कहा " चाल रेडियो पर गीतों सांभड़ये "( चल रेडियो पर गाने सुनते है) यह सुनते ही मेरे शब्द मेरे मुंह में ही रह गये , क्योकि उस वख्त मुझे गाना सुनने और गाने का बहोत ही शौक हुआ करता था तो मैं चुप हो गया । मेने इससे पहले नवोदय में रेडियो नही सुना था , पर यह जानता था कि शिवालिक हाउस में किसी के पास रेडियो है और सीनियर हाउस में तो विद्यार्थी मोबाइल और आईपोड तक रखते थे । ऐसी चिजे रखना अलाव नही था और एक तरीके से यह इललीगल था ।
यादो की झलक : डायरी
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