विज्ञान का विधार्थी होने के नाते मेरा विज्ञान का पक्षधर होना स्वाभाविक होना चाहिये, एसे मे जब अंधविश्वास पर वार करते हुये लेख पढने को मिले तो मुझे अच्छा लगना चाहिये, पर मे क्या करू मुझे दूसरे अनदेखे पहलू पर नजर डालने की बुरी आदत जो है, लीक से हटकर सोचने की आदत है. इधर विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मेरे साथी मुझ से यह उम्मीद करते है की माफिया, पूजीपतियों और राजनेताओं की सांठ्गांठ को नजर अंदाज करते हुये हर अच्छी बुरी वैज्ञानिक सोच का मै समर्थन करू. यह भी भुला दू की आज विज्ञान हमे किस दिशा मे ले जा रहा है.
इन दिनों मेरे आस पास विज्ञान और तकनीक के नाम पर जो हो रहा है उसे देखकर चिंतित और व्यथित हू और अपने को असहाय महसूस कर रहा हू. गलत का विरोध भी करू तो केसे ? विरोध करने के लिये और अपनी बात कहने के लिये उन्ही के पास जाना होगा जिसका विरोध करना है, यही मेरी मजबूरी है. इस हद तक की निर्भरता इसी विज्ञान की ही तो देन है.
अगर आज मुझे अपनी बात आप तक पहुचानी है तो करोडो का चेनल चाहिये.... एसा एक नही सेकडो चेनल चाहिये, क्योंकी मे जिनके बारे मे कहना चाहता हू उनके पास मुझे गलत साबित करने के प्रचार साधन आपार है. इतना असाहाय तो मेरे पूर्वजों ने भी पहले कभी महसूस नही किया होगा. यह सच है की वो कम ज्ञानी थे, अंधविश्वासी भी थे. शायद हमारी तरह गलत और सही की पहचान नही कर पाते थे. उन्हे नही पता था की पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर काटती है. पर उनकी अपनी एक जीवनशेली थी जिसे अपना कर वो हजारो सालो से पर्यावरण के साथ सामंजस्य बनाये रखते हुये इंसानी जीवन को जीवत बनाये रखा. पर आज क्या ?
CZYTASZ
विज्ञान की देन
Literatura Faktuहे वैज्ञानिक सोच वाले इंसानों इस लेख को पढो ...लिखा तो इसे मेने अपने एक गुरूमित्र को है जो समाज मे फेले अंधविश्वास से लड रहा है. वो मेरे एक अच्छे मित्र है और गुरू भी पर इसमे उठाये गये सवाल आप सब के लिये है. अगर इसे पढने के बाद बहस करनी हो तो पहल...