वो अपना सा कौन था

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जब मै माँ के गर्भ मे
उस नरक के भीतर जीवन की तलाश करती
वो धीरे से था मुझको थामे
जीवन का संचार करता चला गया ...
मै जब भी परेशान होती ....
जब भी मै रोया करती ...
वो चुपके से मुझे प्रेम करता ,
हिम्मत बँधाता चला गया
जब मै दर्द मे चिल्लाया करती ...
तो वो आकर प्रेम से सहलाता
तब मनो मेरा दर्द जैसे वो लेलेता
मुझमें उत्साह भरता चला गया ...
मै जब जब भी कोई गलती करती
मन पर उसकी आवज़ थी कौंधती ,
तू अंश है मेरा
इसलिये अब रुक जा
मै चुपचाप सहमी सी हर बार पूछती
तुम कौन हो ...
जो हर पल तुम्हरी नजर मुझपर है रहती
वो जोर से हँसता ..
मुझे मेरे सवालो के साथ बेचैनी छोड़ता चला गया .....
जब भी मै कुक्छ अछा करती
वो हर बार मेरी पीठ थप थपाता ...
और बहुत सारे आशीर्वाद देता चला गया ....
जब भी मै गुमसुम सी ...
अचरज की स्थिति मे होती ..
मुझे कुछ समझ नही आता ,
वो मुस्कुराता ...
मेरे हाथो को थामता ....
मुझे इक रस्ते पर छोड़ देता ...
और कहता ....
इसी रस्ते पर मंजिल है तेरी ...
मै फिर कहती तुम मेरे अपने से एहसास होते हो ..
तुम कौन हो ..
वो मुस्कुरते हुए
बिना जवाब दिये
असमंजस की स्थिति मे हर बार मुस्कुराता चला गया ....
बचपन से अब जवान हो गयी ...
मुझे हर पल इक ही बात जाननी थी ..
की वो कौन है ...
जो हमेशा रहा बनकर मेरा हम साया .....
मै अशांत सी
बस अपने इस सवाल का जवाब थी चाहती ....
सोचती कौन है वो अपनो से भी अपना ...
जो सबसे पहले मेरी तकलीफ को हर बार एहसास करता है ....
वो कौन है जो हर बार मेरे दर्द को अपना लेता है ...
वो कौन है जो कभी कभी मेरे जख्मों को
देख बहुत रोता है ....
उसपर मलहम लगाता है ....
वो कौन है जो मुझको हमेशा हसी देता है ....
अब बहुत मुश्किल था इक कदम भी और चलना ...
चाहती थी बस अब जवाब पाना ...
फिर इक आवज़ गूंजी
जिस रस्ते पर छोड़ा है
उसपर चलो अगर है जवाब पाना
मै खुश थी
और बस अब चलती गयी चलती गयी ...
जब थक जाती ..
तो फिर आवज़ आती
नही करना अब विश्राम ..
मंजिल मिलने से पहले ....
मै फिर चल पड़ती ...
चलते चलते जब गिर गयी ...
तो फिर इक आवज़ आयी
अब मै पास हूँ ...
अब रुको नही ....
मै फिर चली अब चलती गयी ....
पर अचानक फिर गिरी ..
उस पल उठा नही गया ...
मै गिरी पड़ी रही ...अब कोई आवज़ बहुत देर
नही आयी .....
पर अब कोई सामने खड़ा था ....
बहुत सुंदर बहुत मनमोहन सा ....
उसको देख कर मानो मेरे होश उड़ गया ....
मै स्तब्ध थी खड़ी रही ....
और मेरी आँखे बहना छोड़ नही रही ..
अब मै शून्य थी .....
क्योंकि वो कोई और नही वो मेरे गुरु देव थे ....
आशुतोष भगवान जिनका नाम है ...
गुरुदेव मुझे प्रेम करते चले गये ...
और मेरे गुनाहों को माफ कर ...
मुझे जानवर को इंसान बनाते चले गये ........
komal thakurani

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