बचपन का फ़ार्मूला

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विशाल एक सीधे-साधे स्वभाव का  लङका है। ज़्यादातर चुपचाप अपनी कक्षा मे बैठा करता है। रोज़ समय पर अपने स्कूल जाता है। और समय पर  ही अपने घर वापस आ जाता है। सीधा होने के कारण कक्षा के बाकी छात्र उसे काफी परेशान किया करते हैं। पर सीधा होने के साथ ही उसके अन्दर अनूठी खूबीयाँ भी हैं। जो उसे
बाकी सभी छात्रों से अलग बनाती हैं।

उन्हीं खूबियों में से एक है उसके अवलोकन अर्थात औवजर्वेशन करने की आदत। वो हमेशा अपने आसपास की हर वस्तु को बड़े ही गौर से देखता, सुनता और समझता है।

एक वार की बात है। मध्यभोज 
अर्थात इनटरवल के समय पर
सभी बच्चे विद्यालय के मुख्य द्वार पर खङे थे। विशाल ने काफ़ी देर तक वहीं से देखने की कोशिश की परन्तु उस दूरी से उसे कुछ भी नज़र नहीं आया। तब विशाल ने सोचा, क्यों न पास जाकर पता लगाया जाये कि आख़िर माजरा क्या है? विशाल ने जब पास जाकर देखा तो पता चला कि एक आइसक्रीम बाला
विद्यालय के मुख्य द्वार के निकट
आइसक्रीम बेच रहा है। आइसक्रीम बाले को देखकर विशाल का मन
ललचाने लगा और झट से
विशाल ने अपनी जेबें टटोलना
शुरू किया। काफ़ी खोजबीन करने के बाद, उसकी ज़ेब से एक रुपये का सिक्का निकला। विशाल ने
झट से अपना हाथ मुख्य द्वार की सलाख़ों के  बीच से बाहर निकाला और बोला अंकल एक आइसक्रीम
मुझे भी दो।

आइसक्रीम बाले ने विशाल के हाथ से पैसे लेकर अपने गल्ले में डाल दिये। विशाल की ही तरह विद्यालय के कुछ और विद्यार्थी भी पैसे देकर
अपनी-अपनी बारी का इन्तेजार  करने लगे। काफ़ी देर हो गयी।
बच्चे एक-एक करके अपनी आइसक्रीम लेकर मुख्य द्वार से पीछे की ओर दूर जाकर खाने लगे।विशाल आज उस आइसक्रीम के चक्कर में अपना टिफ़न भी खोल कर नहीं देख पाया थी। अचानक ज़ोर से घंटी बजी और सभी बच्चे तितर-वितर होकर अपनी-अपनी कक्षा की ओर भागने लगे। इन्टरवल खत्म हो गया और सभी बच्चे
अपनी-अपनी कक्षा में पहुँच गये।

विशाल अभी भी अपनी आइसक्रीम का इन्तेजार रहा था कि अचानक आइसक्रीम बाला भी वहाँ से
जाने लगा। विशाल ने बङे ही करूण स्वर में बोला अंकल मेरी आइसक्रीम? आइसक्रीम बाला
शायद विशाल की ये करुणा भरी और धीमी आवाज़ सुन ही नहीं पाया और अपने रास्ते चला गया।

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