मनोविज्ञान सामान्य
एक कला है तारीफ करना
कहते हैं कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय.. यानी जो आपकी निंदा करता हो, तो उससे बचना नहीं, बल्कि उसे अपने निकट रखना चाहिए। दरअसल, जब कोई आपकी आलोचना करता है, तो इसका मतलब है कि आपके किसी कार्य या आपकी पर्सनैल्टी में कोई न कोई ऐसी कमी है, जिसे ठीक करने की जरूरत है। लेकिन यह भी सच है कि कोई हर वक्त अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहता। ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि आप अपनी आदतों में दूसरों के अच्छे ार्यो की तारीफ करना भी शामिल करें।
जरूरत तारीफ की दरअसल, तारीफ का मुख्य उद्देश्य होता है किसी के अच्छे कार्य या पर्सनैल्टी के किसी विशेष गुण को सकारात्मक अर्थो में संबंधित व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप में या दूसरों के सामने व्यक्त करना। ऐसा करने से दूसरों की नजरों में उस व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व व कार्यो की अहमियत बढ़ जाती है। मिसाल के तौर पर यदि कोई स्टूडेंट पढ़ाई के साथ-साथ रचन यदि किसी के अच्छे कार्यो की तारीफ करना जानते हैं, तो सभी के चहेते बन सकते हैं। तारीफ करने की कला बता रही हैं डीयू के इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर वुमेन की प्रिंसिपल डॉ. अरुणा सीतेश :
नात्मक गतिविधियों में भी अव्वल हो और उसके कार्यो को पॉजिटिव रूप में उसके सामने या फिर जब वह समूह में हो, तो सम्मानजनक शब्दों के साथ उसकी सराहना की जाए, तो निश्चित रूप से ऐसी प्रशंसा ेभविष्य में बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
निंदा कम, प्रशंसा ज्यादा
आम लोगों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि अपनी तारीफ सुनकर ही अधिकांश लोग उत्साहित होते हैं और निंदा से हतोत्साहित। परीक्षा में अच्छा परफॉर्म न करने वाले किसी स्टूडेंट को यदि लगातार उसकी कमियां ही गिनाई जाती रहें, तो ऐसी स्थिति में हो सकता है कि उसका आत्मविश्वास ही डगमगा जाए। वहीं, यदि उसके किसी खास गुण को तलाश कर प्रशंसा की जाए, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि अगली बार वह बेहतर कर दिखाए।