तुम्हारी खामोशियों के नग्मे

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तुम्हारी खामोशियों के नग्मे 

मेरी पलकों प जल रहे हैं 

हर इस हरफ में खुदाया कितने 

कितने तूफां मचल रहे हैं 

के मैंने चाहा तुम बुलाते 

तुम्हे ये उम्मीद हम पुकारें 

न जाने कितने भंवर लिए हम 

तनहा तनहा चल रहे हैं 

सुनो जो मुझसे मिरी कहानी 

रंज होगा आँख भर कर 

ये जिन्दगी है जहर की शबनम 

हम कतरा कतरा निगल रहे हैं 

कुमार प्रवीण

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⏰ Last updated: Sep 28, 2013 ⏰

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