Chapter 2 - Karnika. Monday, 26 - Oct - 2015

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शाम  7 : 30  बजे ।
उस वक्त मैं अपनी माँ, नानी माँ और दादी माँ के साथ अपने कमरे में थी । सुबह से ही मुझे महसूस हो रहा था के आज ज़रूर कुछ होने वाला है । और शाम होने तक मेरा ये डर यक़ीन में बदल गया ।
ऊपर आकाश में काले - घने बादल छा गये थे और कड़कती बिजली के धमाकों के साथ ज़ोरदार बारिश शुरू हो चूँकि थी । तूफ़ानी हवाओं और लहरों ने सभी को चिंता में डाल दिया था ।
हमें बारिश बहूत पसंद थी । लेकिन ये मौसम हमारे मन में डर पैदा कर रहा था । इस अपशकुनी (bad foreboding)  मौसम को देखकर सब यही प्राथना कर रहें थे के कोई अनहोनी (mishap) ना हो । लेकिन तभी महल से आयी एक अंजान धमाके कि आवाज़ ने हमारे होश उड़ा दिये ।
"राज माता महल पर हमला हुआ है । सेनापति (commander) शेल्य अचानक महल में घुस आये है ।" हमारी सेविका ने अंदर आते ही डर से कांपते हुए कहा ।
"क्या..! सेनापति..?" माँ ने हैरान होकर कहा और लड़खाकर  बिस्तर पर बैठ गयी ।
"जी हाँ, महारानी । महाराज समुद्र शेन उन्हें रोकने कि कोशिश कर रहे है । लेकिन सेनापति उन पर हावी है । इसलिये महाराज ने आप सबको महल छोड़कर जाने के लिये कहा है ।" सेविका (slave) ने सूचना देते हुए कहा ।
"हमें जल्दी यहां से किसी सुरक्षित जगह जाना होगा ।" दूसरी सेविका ने घबराहट में कहा ।
"नहीं, मैं शेल्य को छोड़कर नहीं जा सकती । वो मेरा बेटा है । और मैं उसे इस राज्य को तबाह नहीं करने दूंगी ।" नानी माँ ने गुस्से में कहा और बाहर चली गयी । उन्हें गुस्से में बाहर जाते देखकर दादी माँ भी तेज़ी से उनके पीछे चली गयी ।
मैं भी उनके पीछे जा ही रही थी के माँ ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे रोक लिया ।
"नहीं, कर्णिका । तुम वहां नहीं जा सकती । तुम जल्दी से यहां से किसी सुरक्षित (safe) जगह पर चली जाओ । तुम्हारा बचे रहना हम सबके लिए बहूत ज़रूरी है ।" माँ ने मेरी तरफ देखकर कठोरता से कहा ।
"लेकिन, माँ आप । मैं आपको और सबको छोड़कर नहीं जा सकती ।" मैने परेशानी में उन्हें गले लगाते हुए कहा ।
"नहीं, तुम्हे जाना ही होगा । तुम्हे अपना जीवन कार्य पूरा करना ही होगा । तभी तुम हम सबको बचा पाओगी ।" माँ ने मुझे दूर करते हुए मेरी तरफ देखकर कहा ।
"लेकिन माँ, अगर आपको कुछ हो गया..." मैने डर से कांपते हुए कहा ।
"नहीं, हमें कुछ नहीं होगा । वो ज्यादा से ज्यादा हमें बंदी (captive) बना सकता है । लेकिन अगर तुम भी यहीं कैद होकर रहे गयी तो इस तबाही को कभी भी नहीं रोक पाओगी । इसलिये तुम्हे यहां से सुरक्षित निकलना होगा और हमारे रक्षक को ढूँढना होगा ।" माँ ने कठोरता से कहा ।
"लेकिन माँ.." मैंने कहा और तभी कमरे के दरवाज़े पर ज़ोरदार आवाज़ सुनाई दि ।
"बस अब और कोई सवाल नहीं । हमारे पास समय नहीं है । तुम मुझे वादा करो के तुम अपना कार्य (काम - work) पूरा किये बिना नहीं लौटोगी ।" माँ ने मेरा हाथ अपने सर पर रख कर जल्दबाज़ी में कहा । और उनके कहते ही मेरे सारे सवाल मेरे अंदर ही बँध होकर रहे गये ।
माँ ने कहने पर मैं जाने के लिये तैयार हो गयी । लेकिन दरवाज़े पर अंजानी आहट सुनते ही हम घबरा गए और मैं जल्दी से कमरे कि खिड़की से भाग निकली ।
वहां से जाते समय मेरे मन में माँ कि कहीं बातें गुंज रही थी । इसलिये मैं ख़ुद को बचाने कि पूरी कोशिश कर रही थी । मैं अपनी पूरी ताक़त लगाकर पूछ को  तेज़ी से चलाकर आगे बढ़ रही थी । लेकिन तभी पीछे मुड़ने पर मैंने देखा के कुछ लोग हाथों में भाला लेकर मेरा पीछा कर रहें थे ।
उनसे बचने के लिये मैं पानी कि गहराईयों के बीच पड़ी चट्टानों में घुस गयी और उनके बीच से तैरने लगी । इस तरह से कई बार मैंने उनसे पीछा छुड़ाना चाहा । लेकिन हर बार वो मुझे ढूंढ लेते ।
दूर तक तैरने के बाद मैं एक ऐसी जगह आ गयी जहां बहूत सारी बड़ी - बड़ी मछलियाँ, समुद्री घास और ऊँची चट्टानें थी । लेकिन वो अब तक मेरा पीछा कर रहें थे ।
मैंने सोच लिया के कुछ भी करके मुझे इन्हें दूर करना ही होगा । मैंने उन सबके पीछे तैर रही एक बहूत ही बड़ी और गुस्सेंल (angry) कांटेदार मछली को देखा । तब मैंने नीचे से एक पत्थर उठाया और उसे उन लोगों कि तरफ फेंक दिया ।
पानी किसी चीज़ को उछालना या फेंक पाना बहूत मुश्किल था । लेकिन हमारे पास एक ऐसी शक्ति थी जिससे हम किसी भी चीज़ को कमान से निकले तीर कि तरह आगे भेज सकते थे ।
उस पत्थर को फेंकते ही मैंने उस पर अपनी शक्ति चलायी और वो पत्थर सीधा उन सब में से किसी को लगा । इसके बाद मैंने इसी तरह से उन सभी पर बारी - बारी से कइ सारे वार किये जिससे वो अपना संतुलन (balance) खो कर उनके पीछे तैर रही उस कांटेदार मछली से टकरा गये । और उस मछली ने गुस्से में उन पर हमला करना शुरू कर दिया ।
उसके बाद मौक़ा पाते ही मैं उन सबकी नज़रों से मैं बच निकली । लेकिन अगले ही पल मेरा भ्रम (hallucination) टूट गया । उनमें से दो लोग उस भयानक मछली से बच कर मेरी तरफ ही आ रहें थे । और उन्हें देखकर मैं बहूत डर गयी ।
लेकिन तभी मैंने वहां से कई सारी व्हेल मछलियों को देखा और मुझे एक उपाय (idea) सूझा । उन दोनों को भटका ने लिये मैंने नीचे समुद्री घास में तैरना शुरू कर दिया और मौक़ा मिलते ही उन्हीं घास में छुपकर बड़ी चट्टानों के पास पहुँच गयी । जैसे ही मैंने उन व्हेलों को पास आते देखा वैसे ही मैंने उनमें से एक को अपना काम करने के लिये चून लिया ।
उस व्हेल मछली के मेरे क़रीब आते ही मैं अपनी छुपने कि जगह से सबके सामने निकल आयी । लेकिन इससे पहले के वो लोग मुझे पकड़ पाते उस व्हेल मछली ने अपना विशाल (huge) मुँह खोलकर मुझे अपने मुँह में भर लिया ।
उन सभी हमलावरों के लिए शायद ये बहूत बड़ा झटका था । क्योंकि उन्हें लगा होगा के मैं उस मछली का चारा बन चूँकि हूं । लेकिन ऐसा नहीं था । मैने ये जानबूझकर और काफ़ी सोच - समझ कर किया था ।
मैंने उसे अपनी शक्तियों से पहले ही वश (mortify) में कर लिया था । और मैंने उसे अपनी सवारी के लिये चूना था । अब मैं उसके मुँह में ज़िदा थी और वो मुझे यहां से दूर ले जा रही थी ।
काफ़ी देर बाद अचानक वो मछली एकदम से परेशान हो गयी और ज़ोर - ज़ोर से हिलने लगी । मैं इस से बहूत परेशान हो गयी थी । लेकिन शायद अब इसे छोड़ने का समय आ चूका था । मछली अब अपने होश में आने लगी थी । और मेरा क़ाबू उस पर से छूटता जा रहा था । इसलिये अब मेरा उसके मुँह में रहना बहूत ही ज्यादा ख़तरनाक था ।
मैंने जल्दी से उस व्हेल मछली को समुद्र कि सतह (surface) पर जाने का आदेश दिया और वो मुझे ऊपर सतह पर ले आयी । लेकिन वहां चारों तरफ तूफ़ानी समुद्र था । तभी मुझे एक बड़ा - सी नौका (ferry, boat) नज़र आयी और मैं उस तरफ बढ़ गयी ।
नौका के पास पहुँचते ही मैंने अपनी शक्तियों से अपनी चारों तरफ के पानी को ऊपर उठाया और बहूत मुश्किल से कैसे भी कर के नौका के अंदर कूद गयी । उसके बाद थकावट और कमज़ोरी ने मेरे होश छीन लिये और मैं बेहोश हो गयी ।
Tuesday, 27 - Oct - 2015.
सुबह मेरी आँखें खुलने पर मैं ये जानकर हैरान रहे गयी के इतनी देर तक पानी से बहार रहने पर भी मैं अब तक ज़िन्दा थी । इतना ही नहीं, मेरे शरीर से पानी के सूखते ही मेरी पुंछ भी ग़ायब हो चूँकि थी । और उसकी जगह मेरे पैर निकल आये थे ।
मैं पानी से बाहर इतने ज्यादा समय के लिये पहली बार रही थी । इसलिये मेरे लिये ये बहुत ही नया और आश्चर्य (wonder) से भरा था ।
मैं भले ही एक जलपरी (mermaid) थी । लेकिन अब मेरा रूप  बदल चूका था और मैं एक इन्सान बन चूँकि थी । मेरी मछली कि पुंछ और त्वचा बदलकर इन्सानों जैसे हो गये ।
मगर माँ कि वजह से मैं समुद्र में वापस नहीं जा सकती थी और एक इन्सान बनने के बाद मैं अपनी दुनिया में जा भी पाउंगी या नहीं ये मैं नहीं जानती थी । इसलिये अब मुझे इन्सान बनकर ही रहना था ।
मेरे पैर तो थे पर वो अभी तक बहुत कमज़ोर थे और मुझे चलने कि आदत नहीं थी । इसलिये खड़े होने में मुझे काफ़ी परेशानी उठानी पड़ी ।
मैंने नौका में हर जगह देखा लेकिन वहां कोई नहीं था । शायद कल रात के भयंकर तूफ़ान ने उनकी जान ले लि थी ।
तभी नौका में घूमते वक्त मैंने वहां लगी एक लड़की कि तस्वीर को देखा जिसमें उसने लंबे और घूमावदार कपड़े (साड़ी, sari) पहने हुए थे । और उसे देखकर मैं समझ गयी के यहां मेरे समुद्र नगरी के कपड़े काम नहीं आएँगे । इसलिये मैंने वहां आसपास देखा । लेकिन वहां पर मुझे बस एक बड़ा - सा सफ़ेद कपड़ा मिला जो उस लड़की के कपड़ों जैसा नहीं था । इसलिये मैंने उसे अच्छी तरह से अपने चारों तरफ लपेटा और कोनो को गरदन के पीछे से लेकर कई सारी गाँठ लगा दि ।
अब मैं बाहर जाने के लिये तैयार थी । तभी अचानक वो नौका किसी चीज़ से जा टकराई और मैंने जल्दी से बाहर आकर देखा ।
लहरों के साथ बहते हुए वो नौका किसी किनारे तक पहुँच गयी थी और उस नौका के रूकते ही मैं नीचे उतर आयी ।
मैंने देखा के वो शहर बहुत बड़ा था और वहां कि ज़मीन पर कई सारी बड़ी - बड़ी इमारतें बनी थी । मगर वहां आसपास कोई इन्सान नहीं था । वहां बस किसी तरह के कुछ जानवर घूमते नज़र आ रहें थे जो मुझे काफ़ी दूरी पर थे ।
लेकिन मुझे वहां पाकर वो सभी जानवर अचानक मेरी तरफ़ देखने लगें और मेरी गंध पाते ही मेरी तरफ़ दौड़ पड़े । उन्हें अपनी ओर आता देखकर मुझसे रहा नहीं गया और बिना कुछ सोचे - समझे मैं भी पलटकर सीधा आगे दौड़ पड़ी ।

Alamana - The Secret of Indian Ocean#YourStoryIndiaWhere stories live. Discover now