जैसे मिली वैसे

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नाराज़ सी है वो शायद...
क्युकी कभी मुस्कुरा के नहीं मिली
कभी उदास मिली,
कभी मायूस मिली,
कभी कही खोयी मिली,
कभी किसी क लिए रोई मिली,
कभी किसी परिंदे सी उड़ती हुई मिली,
तो कभी शेर सी दहाड़ती मिली,
कभी किसी नादान बच्चे सी मिली,
कभी तजुर्बेदार बुजुर्ग सी,
हां मिली थी कुछ वक़्त के लिए मुस्कुरा कर...
पर उसकी भी कीमत चुकानी पड़ी थी!
ये ज़िन्दगी है साहब,
जैसी मिली है वैसी जी ली,
कुछ हँसा के,
कुछ रुला के,
के कुछ गवाँ के,
कुछ पा के!
बहुत कुछ सिखाया है ज़िन्दगी ने!
बस कुछ कम नाराज़ होती तो अच्छा था...

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