सीताजी को अपहृत कर अपनी राजधानी लंका ले जाते हुए राक्षसराज रावण का सामना पक्षीराज जटायु से होता है। जटायु रावण के हाथो घायल होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और उसका अंतिम जल संस्कार श्रीराम के हाथों द्वारा संपन्न होता है।
पक्षीराज जटायु का अंतिम जल संस्कार संपन्न करने के बाद जब श्रीराम और लक्ष्मण पश्चिम दिशा की तरफ घने जंगलों में आगे को बढ़ते हैं तो उनका सामना मतंग मुनि के आश्रम के आस पास उक्त राक्षसी होता है। इसका घटना का जिक्र वाल्मिकी रामायण के आरण्यक कांड के उनसठवें सर्ग अर्थात 59 वें सर्ग में कुछ इस प्रकार होता है।
[आरण्यकाण्ड:]
[एकोनिसप्ततितम सर्ग:अर्थात उनसठवाँ सर्ग]श्लोक संख्या 1-2
तस्मै प्रस्थितो रामलक्ष्मणौ ।
अवेक्षन्तौ वने सीतां पश्चिमां जग्मतुर्दिशम् ॥1॥पक्षिराज [ यहां पक्षीराज का तात्पर्य जटायु से है] की जल क्रियादि पूरी कर, श्रीरामचन्द्र और लक्ष्मण वहाँ से रवाने हो, वन में सीता को ढूंढते हुए पश्चिम दिशा की ओर चले ॥1॥
तौ दिशं दक्षिणां गत्वा शरचापासिधारिणौ ।
अमिता पन्थानं प्रतिजग्मतुः ॥2॥फिर धनुष वाण खड्ड हाथों में ले दोनों भाई उस मार्ग से जिस पर पहले कोई नहीं चला था, चल कर, पश्चिम दक्षिण के कोण
की ओर चले ॥ 2 ॥श्लोक संख्या 3-5
अनेक प्रकार के घने झाड़, वृक्षवल्ली, लता आदि होने के कारण वह रास्ता केवल दुर्गम हो नहीं था, बल्कि भयंकर भी था ॥ 3॥
व्यतिक्रम्य तु वेगेन व्यालसिंहनिषेवितम्।
सुभीमं तन्महारण्यं व्यतियातौ महाबलौ ॥ 4॥इस मार्ग को तय कर, वे अत्यन्त बलवान दोनों राजकुमार, ऐसे स्थान में पहुँचे, जहाँ पर अजगर सर्प और सिंह रहते थे । इस महा भयंकर महारण्य को भी उन दोनों ने पार किया ॥4॥
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राक्षसी अधोमुखी [दूसरी सूर्पनखा]
Non-Fictionलक्ष्मण जी द्वारा राक्षसी सुर्पनखा के नाक और कान काटने की घटना सर्वविदित है। वाल्मिकी रामायण में एक और राक्षसी का वर्णन किया गया है जिसके नाक और कान लक्ष्मण जी ने सुर्पनखा की तरह हीं काटे थे। आइए देखते हैं, कौन थी वो राक्षसी?
राक्षसी अधोमुखी [दूसरी सूर्पनखा]
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