मैं छोटी थी तो,
अपने एक हाथ पे बैठा के घर की सैर कराया करते थे।
मुझे चोट लग जाए तो पूरा घर सिर पे उठा लिए करते थे।
क्या दिन थे वो,
जब मेरे पापा मुझसे भी छोटा बन जाया करते थे।खुद फटा पहन के, मुझे नए कपड़े पहनाए करते थे।
अपनी कमाई से थोड़ा पैसा बचा के मेरे लिए नई गुड़िया लाया करते थे।
खुद के भूख से पहले मेरी भूख मिटाया करते थे।
क्या दिन थे वो,
जब मेरे पापा मुझसे भी छोटा बन जाया करते थे।स्कूल जाते वक्त मैं रो न दूं, इसलिए रोज नए बहाने बनया करते थे।
और अगर रो दूं, तो मेरे साथ मेरे क्लास में बैठ जाया करते थे।
मैं रोज पेंसिल घूमती, पर वो बिना डांटे मुझे नई खरीद दिया करते थे।
क्या दिन थे वो,
जब मेरे पापा मुझसे भी छोटा बन जाया करते थे।आज मैं इतनी बड़ी होगई हूं, पर अब भी वो वैसे हीं हैं।
प्यारे से, निराले से, वो अभी भी बच्चे हीं हैं।
अब भी वैसे हीं चिंता करते हैं जैसे बचपन में किया करते थे।
बन जाऊ कुछ पढ़ लिख के अब भी यही दुआ करते हैं।
मेरे पापा आज भी मुझसे छोटा बन जाया करते हैं।AUTHORS' NOTE:- I don't own any of the pictures used above in the poem
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मेरे पापा ❤️
PoetryThis poem is about every father's love and sacrifices for their children