उस घर की याद

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आओ उन पलों में पिछे चले

बीते लमोह से मिले

जहाँ हम पले बड़े।

उन दीवारों पे बनें चित्रों को निहारें

जो रंग कि परत पड़ने से छिपे हैं सारे।

उन मोमबत्ती के मोम को खुरेचे जो जमे हैं

बत्तियों के गुल होने के मारे।

आओ चले बचपन को जी आए

वो दो खूट पानी के जाम की तरह पी आए।

आओ चलो थोड़ा झूठा ही सही

उस बचपन को जी आए।

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⏰ Last updated: Dec 31, 2020 ⏰

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