कभी जलाया कभी बुझाया
तुमने मुझको दीप समझ करपर न जाना सदा जला हूँ
तुम्हें रोशनी देने को मैंअंधियारा रहता कुटिया में
जीवन में तेरे मेरे बिनशोणित अपना जला दिया है
सब कुछ अर्पण कर देने कोफिर भी तुमने बुझा दिया मन
सारहीन सा उसे समझ करकभी जलाया कभी बुझाया
तुमने मुझको दीप समझ कर ।