"कज़रारे बादल तुम आना"

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    " खुशी साथ जो अपने लाए थे
       खुशी साथ अपने ले गए
       गम व दर्द तोहफे में दे गए"

    परदेस से प्रिय जब घर लौटें
               कज़रारे बादल तुम आना

जब ताप तप्त हो गात कभी           
               शीतलता मन को दे जाना

  छोटी-छोटी नन्हीं बूंदे  बरसाकर
                  तुमने अम्बर से
  धरती की सारी प्यास बुझा दी
                बरसे द्रवित हो अम्बर से

सरिता में यौवन इठलाया
             गर्वित हो मस्तक उमड़ पड़ी
हर ओर दिखी जब हरियाली
        कृतज्ञ हो  वसुधा भी चमक उठी

सोए हुए अरमाँ जाग उठे
          मन मिलने को उनसे तरसा
मुस्कान अधर से लुप्त हुई
            नयनों से नीर तरल बरसा ।

            
        
       

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