मेरी कहानी के पहले भाग में आप लोगो ने पढा कि किस तरह मेरी भाभी की शरारत के कारण मुझे पूरे दो दिन लड़की बनकर घर के काम भी करने पड़े और नाचना भी पड़ा! गर्लफ्रेंड के हाथो ब्युटीपार्लर मे सजना संवरना भी पड़ा! मगर जब यह दो दिन खत्म हुये तो इस विजय के अंदर एक विजया समा गयी। न जाने कब बाहर निकलने को मिलेगा इस इंतजार भरी आस के साथ। अब आगे –
उस घटना के बाद मेरा और भाभी का रिश्ता दिलों की प्यारी करवटो को नजदीक ले आया था। हँसी-मजाक, मस्ती से खुशियों का तूफानी माहौल था। एक माह बाद एक दिन अचानक भाभी ने मुझसे पुछा फिर से लड़की बनोगे? मैं विस्मीत था मगर लड़की भी बनना चाहता था!
मैं : (शरमाते हुये) हाँ— प– प– पर— क– क– कैसे भाभी?
भाभी: वो तुम मुझ पर छोड़ दो मगर इस बार लड़की की आवाज की भी प्रैक्टिस करो।
मैं : (लडकी की आवाज में ) उसकी जरुरत नही है भाभी जी! मैं तो लडकी ही हूँ!
(और हम दोनो खिलखिलाकर हँस पडे)
तीन दिनों बाद भाभी ने मेरी माँ से कहा कि उनकी सहेली के बहन की शादी है। वो वहाँ से अपने मायके जाना चाहती है। और माँ से भी साथ में आने का आग्रह करने लगी। माँ ने इनकार किया तो कहने लगी फिर आप विजय को मेरे साथ भेज दो।
माँ ने कहा, "विजय तुम्हारे साथ आयेगा तो ले जाओ।"
मुझे छुट्टियाँ तो थी पर मैं जाना नही चाहता था। पर मेरी बात यूं ही मान जाती तो वो भाभी कैसे? आखिर में मैं राजी हुआ।
दुसरे दिन हम एक हफ्ते के कपड़े भर के निकल पड़े। ऑटो मोहन नगर के हमारे दूर के चाचा के घर के आँगन मे रूकी। वो चाचा भोपाल में रहते थे। साल मे एकाध बार ही आते थे! हम ही मकान की देखभाल करते थे। ताला खोलकर हम अंदर आये। भाभी ने कुछ झाड़ू वगैरह मारना शुरू किया। १० – १५ मिनट बाद वहाँ मेरी स्नेहा २ बड़े से बैग लेकर वहाँ आयी। और भाभी से पूछने लगी कि जब स्टेशन पर मिलने की बात हुयी थी तो यहाँ क्यों बुलाया? और ये मेकअप किट क्यों मंगाया? (अब मुझे पता चला कि भाभी ने ही स्नेहा को बुलाया था।)
भाभी: विजय के कारण! सुबह से मेरे पीछे पड़ा है कि प्लीज भाभी, मुझे शादी में लड़की बनाकर ले चलो प्लीज! मैने खूब समझाया मगर मान ही नही रहा। अब तुम ही बताओ उसे कि ऐसा नही कर सकते। और उसने ही मुझे तुम्हे मेकअप किट के साथ बुलाने को कहा।
(एक शरारत भरी मुस्कान के साथ भाभी ने मुझे आँख मारी)
मैं झेप गया।
मैं: भाभी मैंने ऐसा कब कहा?
स्नेहा: ओ हो मेरे हैंडसम को फिर से लड़की की तरह सजना है?
मैं: नही स्नेहा, भाभी मजाक कर रही है!
स्नेहा: बहाने मत बनाओ। बोलो क्या पहनोगे?
इस तरह बातचीत के बाद , हँसी मजाक के साथ शुरू हुआ मेरा परिवर्तन! और फिर उस मकान से गुलाबी साड़ी पहने हुये भाभी, लाल रंग के सलवार सूट मे स्नेहा और रानी कलर के अनारकली सुट में मैं विजया रेल्वे स्टेशन के लिए निकले! रेल्वे और फिर ऑटो – इस तरह हम शादी वाले घर पहुंचे।
शादी वाले घर में मैं भाभी की ननद विजय और स्नेह उनकी फुफेरी बहन बनकर पहुंचे। वहाँ चाय नाश्ता हुआ और फिर न चाहते हुए भी मुझे अपने हाथों मे मेहंदी लगवानी पड़ी – और वजह वही, भाभी की शरारत। फिर शादी के घर मे संगीत का नाच गाना शुरु हुआ। भाभी ने वहाँ सबको बताया कि उनकी ननद बहुत भारी नाचती है। फिर क्या मुझे नाच नचाने के लिए सब पीछे पड़ गए। भाभी भी कातिलाना मुस्कान के साथ बीच बीच में मुझे आँख मारती रही। स्नेहा भी मुस्कराती रही और मैं नाचती रही (कमर का काम तमाम होने तक)!
दुसरे दिन एक तरफ दुल्हन सज रही थी सोलह शृंगार के साथ। दुसरी तरफ मैं ब्रा पेंटी, घाघरा चोली, मेहंदी, नेलपेंट, लीप-लाईनर, लिपस्टिक, लीप ग्लॉस, क्रीम, फाउंडेशन, फेस पावडर, रूज, लाली, आयलाईनर,आय लेशेस,आय-शैडो, मस्करा, काजल, पायल, चार कंगन और 2 -2 दर्जन चूड़ियाँ एक एक हाथ में, अंगूठियाँ, नेकलेस, झुमके, नोज पिन, विग, कुमकुम, बिंदी, माथे की थ्री पीस बिंदी, गजरे के साथ सज रही थी! दुल्हन सज रही थी अपने पिया के लिए और मैं भाभी और स्नेहा के लिए!
दुल्हन के बाद अगर किसी पे सबकी निगाहें थी तो वो मैं थी विजया। दुल्हन के साथ किसी की खूबसूरती की तारीफ हो रही थी तो वो खुशनसीब भी मैं थी विजया! दुल्हन से भी ज्यादा शर्मिली और खुश थी विजया! सब माहौल रंगीन था।
तभी वहाँ मानो अचानक से प्रकट हुई मेरी भाभी की भाभी! मेरी तो सिट्टी पीट्टी गम! पर मौका देखकर मेरी भाभी ने उनको मेरी सच्चाई बतायी। वो बहुत समय तक हँसती रही! पर मेरी खूबसूरती की तारीफ भी करती रही। और उनके घर यानी मेरी भाभी के मायके चलने का आग्रह करने लगी! भाभी के मायके ? वो भी इस तरह विजया के रूप में?
मेरी भाभी की भाभी ने जब मुझे लड़की के रूप मे देखा तो उनका हँसना मुझे पुरी तरह थरथरा गया था। उपर से भाभी को हमारे साथ घर आने का न्योता। मतलब भाभी की माँ और भाई के लड़की के रूप मे सामने जाना। मैने भाभी से अकेले मे ले जाकर रिक्वेस्ट की कि प्लीज भाभी अब घर चलो। मायके का प्लान ना करो और मैं रो दिया। तब भाभी ने मुझे अपने पास ले लिया।
भाभीः अरे रो मत पगले। नहीं जायेंगे।
मैं: (खुश हो गया) थैंक्स भाभी!
भाभी: (शरारत भरी कातिलाना मुस्कान के साथ) मैं मायके नही जाऊंगी मगर मेरी शर्त तो तुम्हें पूरी करनी पड़ेगी!
मैं: भाभी, अब कौनसी शर्त रह गई ?
भाभी: यही कि आपको घर पे कुछ दिन और विजया बनना पडेगा।
मैने यह सोचा कि भाभी के मायके जाने से तो यह अच्छा है। और माँ के सामने भी तो एक बार कर चुका हूँ। इसलिए मैंने भाभी से हाँ कह दिया। भाभी ने उनकी भाभी से कह दिया इस बार वो मायके ना आ पायेगी। और विजय-विजया का राज किसी को भी न बताने का वचन भी ले लिया। तब उनकी भाभी ने भी एक शर्त रखी कि वो दोबारा कभी एक बार फिर विजया से मिलना चाहेंगी। और मेरी भाभी ने हँसते हुये उनकी बात मान ली।
भाभी, मैं, स्नेहा वहाँ से ऑटो फिर ट्रेन और फिर ऑटो करते हुए वहीं पहुँच गए जहां से हमने विजया कि शुरुआत की थी शादी मे जाने के लिए। फिर वहाँ से स्नेह अपने घर और हम हमारे।
पूरा दिन ठिक-ठाक गया। रात को हम खाना खा रहे थे।
भाभी: माँ जी, ये विजय कब से मेरे पीछे पड़कर मेरे कपडे मांग रहा है। आप कुछ समझाओ ने इन्हे।
माँ: क्यो रे ? बहु ये क्या कह रही है? तब तुम्हे भाभी के कपड़े पहनने को दिये थे क्योंकि तेरे भाई की जान बचानी थी। इसका मतलब ये तो नहीं कि तू जनाना शौक पाल ले। खबरदार वापस ऐसी बातें की तो।
(भाभी ने मुझे रिक्वेस्ट करने का इशारा करते हुये आँख झपकायी थी।अब मैं उलझन में था। एक तरफ थी भाभी की शर्त और मोबाइल में कैद मेरी फोटोज और दुसरी तरफ माँ का सख्त रुख! पर मुझे तो शर्त के कारण भाभी का साथ देना जरूरी था।)
मैं: माँ प्लीज! मेरी बात माँ जाओ।
माँ: हे राम! बेशरम कुछ तो शर्म कर नालायक।
मैं: माँ प्लीज। केवल इस बार। वापस दोबारा ... (न जाने क्यों मेरी आगे आवाज ही न निकली और आँखो से आसू निकल आये)
मुझे रोते देख माँ ने मुझे गले लगाया।
माँ: बहू, इस बार पहना दे इसको तेरे कपड़े। न जाने इसे कैसा शौक लग गया है।
मैं:माँ अभी नहीं। सुबह ..
माँ और भाभी (एक साथ): हाँ बाबा हाँ।
फिर रात नींद मे खो गई।
सुबह भाभी के कहने पर मैं नहाकर उनके कमरे में गया। उधर माँ किसी से फोन पे बात कर रही थी। भाभी एकदम मेरे पास आ गई और मुझे गालों पे चूमते हुए कहा, "कल क्या ऐक्टिंग की है रोने की!" फिर बोली, "आप चूड़ियाँ पहनो। मैं अभी आई।"
मैंने चूड़ियाँ और पायल पहनी, तब तक माँ ने भाभी और मुझे आवाज दी। हमारे जाने के बाद माँ ने कहा वो मौसी के साथ दो धाम को जा रही यही अगले २०-२५ दिनों के लिए। दो घंटे मे तैयार होकर उन्हे निकालना है। माँ की तैयारी मे २ घंटे निकल गये फिर भाभी उन्हेछोडने गयी। तब तक मैं चूड़ी और पायल में था। फिर भाभी आयी और मुझे बनारसी साड़ी मे खूब मस्ती के साथ तैयार किया क्योंकि अब घर मे हम दोनों ही थे। फिर भाभी ने खुद मेरे कपड़े पहन लिया और मुझसे बोली, "अब मैं जीजा और तुम मेरे साली!"
इतने में ही डोर बेल बजी! अब कौन होगा? स्नेहा या कोई और? भाभी का तो पता नहीं, मैं चिंता मे जरूर था।
जैसे ही डोरबेल बजी मैं भाभी के कमरे मे चला गया! भाभी ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर स्नेहा ही थी। अंदर आते ही उसने भाभी से पुछा, "घर मे विजय है या विजया?" भाभी ने कहा, "विजया" और दोनों मेरे पास आ गये!
मुझे बनारसी साड़ी मे देखकर स्नेहा ने मेरी तारीफ कर दी। मैं शरमाया। और क्या करता?
भाभी ने फिर स्नेहा से कहा, "यार इसे लड़की बनाया, डांस करवाया, घर के काम भी करवाए। पर अब कुछ नया किया जाए!"
स्नेहा ने कुछ देर सोचा फिर बोली, "क्यों न हम इससे टास्क करवाये?"
फिर उनकी बाते कानाफुसी में बदल गयी। और फिर फ्रिज से एक ककडी निकालकर गोल चकतो मे काटा गया। धागे से सब टुकड़े उपर टांग दिये गये एक रस्सी पर। फिर मैं कुछ समझ पाता उसके पहले मेरे हाथ पीठ पीछे बांध दिये गये। फिर मुझे कहा, "ये उछल उछल कर खाना है।"
मेरे पैरो में घुंगरू की पायल पहनाकर पैर भी बांध दिये। और आँखें भी! मरता क्या न करता? मैं उछलता गया और खाता गया। पसीना बहने लगा। वो दोनो कि हँसी, पायल की अवाज और पसीने से भीगते मेरे ब्रा और ब्लाउज! आधा घंटा बित गया। पर ककड़ी थी की खत्म ही नहीं हो रही थी। मैं थक चुका था।
मैंने बस करने को कहा तो आँखो की पट्टी हटायी गयी। आँखें खुली तो देखा कि रस्सी पर एक भी ककडी नही थी। मतलब मैं बेवजह उछल रहा था।
फिर मेरे कपड़े गीले होने से बदलने की बात हुयी। कुछ पल में मैं हमारी महाराष्ट्र की फेमस नऊवारी (9 यार्ड) साड़ी में रेडी था! खोपा हेअर स्टाईल वीग, गजरा, मोतीयो के कान के टाप्स, मोति की नथ, गले मे ठुशी, चपलाहार, चूड़ियों के साथ मोती के कंगन ,मोति के बाजूबंद, कमरबंद, पाँव में चांदी के कड़े, ओठो पे लाल सुर्ख लिपस्टीक और उसमे ग्लैमर लाने वाला लीप ग्लॉस! काजल, मस्करा से कातीलाना बनी आँखे। मैं पुरी तरह से पारंपारिक वेशभुषा में सजी मराठी बाई(स्त्री) बन चुका था या कहो बन चुकी थी। फिर स्नेहा ने कोल्हापुरी चप्पल पहनाकर मुझसे फैशन परेड की तरह चलने की प्रैक्टिस करवायी। फिर इतराने वाली नाक को मरोड़कर बाते करवाकर मुझे चिढाती रही। फिर मराठी लावणी (मराठी फोल्क डाँन्स) के गाने शुरु किये गये। हम तीनो नाचते रहे। तभी फिर से डोअरबेल बजी। इस बार भाभी की भाभी आयी थी। उनके आने से मैं थोडा नर्व्हस हो गया। भले वो मुझे पहले देख चुकी थी लड़की के रूप में मगर फिर भी मुझे अटपटा लग रहा था। तभी मेरी भाभी ने मुझे चाय और पोहा बनाने का आर्डर दिया। मैं किचन मे गया और काम में लग गया।
तभी कुछ देर बाद भाभी की भाभी किचन में आयी। प्लेटस में पोहा सजाकर ट्रे में रखकर मुझसे कहा, "बाहर लड़के वाले आए है बहना। मगर डर मत बहना, तू बाहर जा।" मुझे तो समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या नया ड्रामा है। मैं पानी लेकर बाहर गया।
हाथ में ट्रे, सर पे पल्लू। झुकी नजरे, दोनो कंधों पर भाभी की भाभी के हाथ। मैं हॉल में गया। सामने दो लोग बैठे हुए थे। पल्लू के अंदर से मुझे इतना ही दिखा कि उनके पाँव मे सॉक्स, प्रेस की हुई पैंट, शर्ट, बेल्ट। मेरी तो सांस फूलने लगी थी। पर फिर थोड़ी नजरे उठाकर मैंने देखा तो टाई दिखाई दी और फिर मुझे दिखा कि बारीक मूँछें लगाई हुई मेरी भाभी और स्नेहा थी वो दोनों! मैं मंद मंद मुस्करायी, उन्हे पानी दिया और फिर पोहा और चाय। फिर मैं नीचे बैठ गयी।
भाभी ने कहा: मैं संजीव हूँ (मेरे भाई का नाम ) और ये मेरा भाई स्नेहिल (स्नेहा)
मैं: (हाथ जोडकर) नमस्ते !
भाभी: आपका नाम?
मैं: विजया
और फिर इस तरह मेरा इंटरव्यू लिया गया जैसे मेरी शादी के लिए लड़के वाले मुझे पसंद करने आये हो! मुझे पसंद भी किया गया। जिसके बाद मैंने सबके पाँव छूए। और फ्रिज में से मिठाई लेकर सबका मुंह मीठा कराया गया। फिर तीनो मुझ पर टूट पड़ी! कोइ नथ के साथ मेरी नाक खींच रही थी। तो कोई कान तो कोई कुछ और। मैं दबी आवाज में चिल्लाई, "बचाओ! इस अबला को लुटने से बचाओ!"
मेरी इस बात से फिर उड़ा हँसी का धमाकेदार फव्वारा। फिर इसी तरह कुछ दिन ये मजाक, मस्ती, शरारत चलती रही। मगर फिर से विजया को विजय में परिवर्तित होना पड़ा। अब फिर से विजया को नया इंतजार था। न जाने अब वो कब बाहर आयेगी!
समाप्त