गुरु की पुकार

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गुरु की पुकार

तुम मिट्टी को महलों में ढालते हो

मैं उस में रूह फूंक देता हूँ

तुम उनको अपने नाम देते हो

मैं उन्में मसीहा खोज लेता हूँ

तुम उनको अल्लाह और राम देते हो

मैं अल्लाह को राम से मिलाता हूँ

तुम मकान बनाते हो , मैं इन्सान बनाता हूँ I

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तुम मजहब के वस्त्र पहनाते हो

में उनको फिर से नंगा करता हूँ

तुम जिस जिस चीज के खरीदार हो

मैं हर उस चीज से डरता हूँ

तुम जीत की खुशी मनाते हो

मैं हार् के भी जीत जाता हूँ

तुम मकान बनाते हो , मैं इन्सान बनाता हूँ I

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तुम्हारी हर् तरक्की मेरी किताबों से जाती है

मेरी हर् खुशी तुम्हारी तरक्की से आती है

तुम लौट के कभी गुरु को देखो न देखो

मैं हर् नए फूल में तुम को पाता हूँ

तुम उपर रहो हमेशा दुआ है मेरी

मैं फिर से नीचे सपने सजाता हूँ

तुम मकान बनाते हो , मैं इन्सान बनाता हूँ I

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तुम अब तो खुद ही नए भगवान बनाते हो

मैं जिसे अब तक देखा नही उसी को पाता हूँ

तुम राम और रहीम को बेखौफ लड़ाते हो

मैं दोनो को इल्म की रोशनी में नेहलाता हूँ

तुम खुदगर्जी में द्रौपदी के कप्ड़े उतार देते हो

मैं हर् नंगे को कप्ड़े पहनाता हूँ

तुम मकान बनाते हो , मैं इन्सान बनाता हूँ I

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तुम दिलों को तोड के हंसते हो

मैं रोते बच्चों को हसाता हूँ

तुम औरों की भूख बेच देते हो

मैं भूखों को रोटी खिलाता हूँ

मैं कौन और क्या हूँ यही पूछ्ते हो तुम

गरीब शिक्षक हूँ सिर्फ बच्चे पढ़ाता हूँ

तुम मकान बनाते हो , मैं इन्सान बनाता हूँ I

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राजा शर्मा Copyright@2012 Raja Sharma

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⏰ Last updated: Aug 20, 2012 ⏰

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