Shobha Manot
July 23 via mobile
आज ख।मोश है स।री क।यन।त !
बेबस है दिल की हरेक श ।
लूट गय। है आज हमसे ,
ल।खों क। विश्व।स हम।र। ।
ज़िन्दगी मुह।ल हो गयी यूँ हम।री
कोई बहुत अपन। गद्द।र हो गय।,
आज मन बड़। बेस।ज़ है,
एक कर।हट सी है
दिल की धड़कनों में !
चोट गहरी है,जख्मी है जिगर !
हमसफर ने उत।री है आब!
आहत किय। है वजूद़ को,
सरेर।ह दुश्मनों के हजूम में,
आज मिट गय। है न।मे मुहब्बत !
दिल की कत।बों से ।
जीने को जीऐंगें ज़िन्दगी मगर
किसी को भी अपन।
न कह सकेगें ,
न किसी के अब हो सकेगें ।
(फरेब) २३ जुल।ई २०१३ ।
शोभ। मनोत ।
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