फरेब

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Shobha Manot

August 8 via mobile

एक मर्द क।अहंक।र !

इस की रीड कह।ँ पर है?

एक औरत जो हर झण,

अपनेअ।पे को रख देती गिरवी ,

हो लेती नीरीह सी उस के आगे ।

वह समझती है इसे प्य।र भर।

आत्म समर्पण , श्रद्ध।, विश्व।स !

पर यहीं होत। उदगमन मर्द के

अहंक।र क। घमण्ड क। ।

वह जब तब उसे प्रत।ड़ित करत।,

हम सफर नहीं उसे रोटी कपड़े

देने के बदले मिल। ,

एक गुल।म समझत। ।

दिख।वे के लिये ब।हर,

संग िलये स।थ हर सभ। में ज।त।,

उसको ग।ड़ी में बैठ।ने के लिये,

ग।ड़ी क। दरव।ज। खोलत।,

हर जगह ह।थ दिख। कर,

उसे पहले आप कहत। ,

हर एक मिलने व।ले से

बड़ी श।न से परिचय कर।त। ।

खुद।नख।स्त।वह विकल।ँग हो,

विलचेयर में बैठ। ब।हर ले ज।त।।

पर यह सब इन्स।नियत,प्रेम नहीं

यह होत। है अहम उसक।,

लोगों को दिख।ने के लिये

'आह।!िकतने मह।न पति हैं'

यह कहल।ने के लिये,

बन्द च।रदिव।री के अन्दर,

ल।च।र पत्नि को हर ब।त में

सुनन। होत। है कि कैसे उसे

घसीट-घसीट कर ,

ले ज।न। पड़त। है

गले पड़ी आफत को ।

"बेच।रे कितन। करते हैं"

मर्द के अहंक।र के हितैषी लोग ।

औरत यदि जी ज।न लग।

सेव। करे तो उसक। फर्ज है,

न करे तो कूलट। है ही ,

बिन। ल।ग लपेट के ।

पर इन स।री ब।तो को शह देती

बिन। वजह की नीरीहत।,

चुपच।प सहन करने की

औरत की अपने प्रति ल।परव।ही।

यहीं है मर्द के अँहक।र की,

सबसे बड़ी जड़ ।

८अगस्त२०१३ शोभ। मनोत ।

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