ग्यारह सितम्बर के बाद करीमपुरा में एक ही दिन ,एक साथ दो बातें ऐसी हुर्इं, जिससे चिपकू तिवारी जैसे लोगों को बतकही का मसाला मिल गया।
अव्वल तो ये कि हनीफ़ ने अपनी खास मियांकट दाढ़ी कटवा ली । दूजा स्कूप अहमद ने जुटा दिया...जाने उसे क्या हुआ कि वह दंतनिपोरी छोड़ पक्का नमाज़ी बन गया और उसने चिकने चेहरे पर बेतरतीब दाढ़ी बढ़ानी “ाुरू कर दी।
दोनों ही मुकामी पोस्ट-आफिस के मुलाजिम।
अहमद, एक प्रगति-ाील युवक अनायास ही घनघोर-नमाजी कैसे बना?
हनीफ ने दाढ़ी क्यों कटवार्इ?
सन्’चौरासी के दंगों के बाद सिक्खों ने अपने केष क्यों कुतरवाए...
अहमद आज इन सवालों से जूझ रहा है। अहमद की चिन्ताओं को कुमार समझ न पा रहा था। कल तक तो सब ठीक-ठाक था ।
आज अचानक अहमद को क्या हो गया?
वे दोनों ढाबे पर बैठे चाय की प्रतीक्षा कर रहे थे।
कुमार उसे समझाना चाह रहा था -’’छोड़ यार अहमद दुनियादारी को...बस ‘वेट एण्ड वाच’ ...जो होगा ठीक ही होगा।’’
‘‘वो बात नहीं है यार...कुछ समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए?’’---अहमद उसी तरह तनाव में था ,
‘‘ जाने कब तक हम लोगों को वतनपरस्ती का सबूत देने के लिए मजबूर किया जाता रहेगा ।’’
कुमार खामोष ही रहा ।
वे दोनो चौंतीस-पैंतीस साल के युवक थे ।
करीमपुरा से दोनों एक साथ पोस्टआफिस काम पर आते ।
आफिस में अक्सर लोग उन्हें एक साथ देख मजाक करते--’’अखण्ड भारत की एकता के नमूने...’’
अहमद का दिमागी संतुलन गड़बड़ाने लगा।
‘‘अब मुझे लगने लगा है कि मैं इस मुल्क में एक किराएदार के हैसियत से रह रहा हूं, समझे कुमार...एक किरायेदार की तरह...!’’
यही तो बात हुर्इ थी उन दोनों के बीच ...फिर जाने क्यों अहमद के जीवन में अचानक बदलाव आ गया?
ŞİMDİ OKUDUĞUN
after 9/11 (ग्यारह सितम्बर के बाद )
Kısa Hikayeafter 9/11 activity the entire muslim society got feared. espacialy in middle east, india and pakistan. the fiction based on the situation and sentiments of indian muslims