बिलौटी अनवर सुहैल बिलौटी ठेकेदारिन साइकिल से उतरी। साइकिल स्टैंड पर लगा, सीधे परसाद पान गुमटी पर आर्इ। परसाद का गतिषील हाथ क्षण भर का ठिठका। गुमटी के सामने खड़े अन्य लोगों का ध्यान बंटा। रामभरोसे हिंदू होटल, धरम ढाबा, ममदू नार्इ की गुमटी और बस-स्टैंड के आस-पास बिखरे लोग सजग हुए। परसाद ने पान का बीड़ा बिलौटी की तरफ बढ़ाया। बिलौटी पान लेकर बड़ी नफ़ासत से उसे एक गाल के सुपुर्द किया और खुली हथेली परसाद की तरफ बढ़ा दी। परसाद ने अख़बार के टुकड़े पर सादी पत्ती, तीन सौ चौंसठ, चमन बहार और सुपारी के चंद क़तरे रखकर बिलौटी की तरफ पेष किया। पान की एक टूटी डंडी में चूना चिपका कर आगे बढ़ाया। बिलौटी ने बड़े इत्मीनान से तंबाकू-ज़र्दा फांक कर चूना चाटते हुए एक रूपए का सिक्का गुमटी में बिछे लाल कपड़े पर उछाला। फिर सधे क़दमों से साइकिल की तरफ़ बढ़ गर्इ। बिलौटी के पैरों में जूता-
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