छोटी-छोटी बातें

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कभी-कभी


कभी-कभी 

कुछ भी बतियाना अच्छा नही लगता 

और चुप रहें तो 

दम घुटने सा लगता है 

वो समझ लेती थीं

मेरे मन की बात

और दुलार से फेरती थीं माथे पर हाथ 

तब ऐसा चटियल नही था सर

कितने आहिस्ता से 

सहलाती थीं बालों को 

और खींच लेती थीं सर अपनी तरफ

कि गोद की आंच में जमी बर्फ पिघल जाती थी

दिल-दिमाग और रूह की ज़मीन पर 

उग आते थे बगीचे और उड़ने लगती थीं तितलियाँ

फूलों की क्यारियाँ खुशबूएं बेखेरने लगतीं 

कभी-कभी 

कुछ भी बतियाना अच्छा नही लगता

और तब आपकी याद आती है अम्मी...


डरपोक


भीरु हो जाता है वो

जो बना दिया जाता है सर्व-शक्तिमान

कैदी हो जाता है वो

जो अपनों से दूर हो जाता है

चुप्पा हो जाता है वो 

जो लोगों को सन्देश देने लगता है

सीमित हो जाता है वो

जो असीमित चाह रखता है

कम-कम दीखता है वो

जो जन-दर्शन के योग्य हो जाता है

और किसी दिन अचानक

जो निर्भीक हो, लोगों के बीच

उठने-बैठने लगे

खूब-खूब बोलने लगे

तो समझ लो कि अब वो

नही रहा सर्व-शक्तिमान

और उसे चाहिए फिर एक बार

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⏰ Last updated: Apr 13, 2015 ⏰

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