समीक्षा: उपन्यास ‘पहचान’
जद्दोजहद पहचान पाने की
-जाहिद खान
किसी भी समाज को गर अच्छी तरह से जानना-पहचाना है, तो साहित्य एक बड़ा माध्यम हो सकता है। साहित्य में जिस तरह से समाज की सूक्ष्म विवेचना होती है, वैसी विवेचना समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी मिलना नामुमकिन है। कोई उपन्यास, कहानी या फिर आत्मकथ्य जिस सहजता और सरलता से पाठकों को समाज की जटिलता से वाकिफ कराता है। वह सहजता, सरलता समाजशास्त्रीय अध्ययनों की किताबों में नही मिलती। यही वजह है कि ये समाजशास्त्रीय अध्ययन अकेडमिक काम के तो हो सकते हैं, लेकिन आम जन के किसी काम के नहीं। बहरहाल, भारतीय मुसलिम समाज को भी यदि हमें अच्छी तरह से जानना-समझना है, तो साहित्य से दूजा कोई बेहतर माध्यम नहीं। डाॅ. राही मासूम रजा का कालजयी उपन्यास आधा गांव, शानी-काला जल, मंजूर एहतेशाम-सूखा बरगद और अब्दुल बिस्मिल्लाह-झीनी बीनी चदरिया ये कुछ ऐसी अहमतरीन किताबें हैं, जिनसे आप मुसलिम समाज की आंतरिक बुनावट, उसकी सोच को आसानी से समझ सकते हैं। अलग-अलग कालखंडों में लिखे गए, ये उपन्यास गोया कि आज भी मुसलिम समाज को समझने में हमारी मदद करते हैं।
भारतीय मुसलिम समाज की एक ऐसी ही अलग छटा कवि, कथाकार अनवर सुहैल के उपन्यास ‘पहचान’ में दिखलाई देती है। पहचान, अनवर सुहैल का पहला उपन्यास है। मगर जिस तरह से उन्होंने इस उपन्यास के विषय से इंसाफ किया है, वह सचमुच काबिले तारीफ है। उपन्यास में उन्होंने उस कालखंड को चुना है, जब मुल्क के अंदर मुसलमान अपनी पहचान को लेकर भारी कश्मकश में था। साल 2002 में गोधरा हादसे के बाद जिस मंसूबाबंद तरीके से पूरे गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार हुआ, उसकी परछाईयां मुल्क के बाकी मुसलमानों पर भी पड़ीं। भारतीय मुसलमान अपनी पहचान और अस्तित्व को लेकर आशंकित हो गया। गोया कि ये आशंकाएं ठीक उस सिख समाज की तरह थीं, जो 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे मुल्क के अंदर संकट में घिर गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद गुजरात दंगों ने मुसलमानों के दिलो-दिमाग पर एक बड़ा असर डाला। इस घटना ने मुल्क में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के मुसलमानों को झिंझोड़ कर रख दिया। अनवर सुहैल अपने उपन्यास के अहम किरदार युनूस के मार्फत इसी कालखंड की बड़ी ही मार्मिक तस्वीर पेश करते हैं।
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samiksha pehchan by zahid khan
Non-Fictionhindi critic zahid khan has critisized my novel pehchan which was published in shesh quarterly