ना जाने तु ना जानू मै : ग़ज़ल

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ना जाने तु ना जानू मैं की यह दवा क्या है,
गुज़र रही है जो क़रीब से यह हवा क्या है!

बहोत ढूँढ़ लिया मगर मुझे मिला तो नहीं,
जिसे समझ ही न सकें यह सवाल क्या है!

मिलीं हर वह चिज बीन माँगे ही ख़ुदा से,
मिला नहीं वह अब तक यह ज़वाब क्या है!

रात भर जागते हैं हम जैसे नींद रूठ गई,
लगा हुआ है जो चाँद पर यह दाग़ क्या है!

तड़प तड़प कर यह जिस्म जलता है जैसे,
धुवाँ तो नहीं है कहीं मगर यह आग क्या है!

कहतें हैं बुजुर्ग के मिलता सब नसीब से,
अगर मिलता है नसीब से तो यह दुवा क्या है!

और कब तक यूँ छुप छुप कर परदा करें,
ऐसे है मरना घूँट घूँट कर तो मज़ा क्या है!

सुना था हमने के मोहब्बत में हम जान देंगे,
जब आईना है रूठा हुआ यह अदा क्या है!

कसम खाई है झ़ील के हम लौट के आयेंगे,
अगर नहीं है वह आज यहाँ तो क़ाज क्या है!

झ़ील

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