प्रेम-बंधन

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प्रेम अद्भुत बंधन है आज़ादी का,
बेड़ियाँ नहीं हैं कोई पाँव में।
उड़ने देता है यह प्रियतम को,
खुली हवाओं में, पंख फैलाए।

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