यूँ घिर गया हूँ!!

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यूँ घिर गया हूँ सवालों से क्या किया जाए,
वह भी मौजूद है महफ़िल
वह नाम जुबाँ से क्या लिया जाए!

ऐसा करेंगे न हम बदनाम किसी को मगर,
वह भी दर्द़ से बेहाल है झ़ील
वह नादान हैं दुवा में क्या दिया जाए!

ऐ ख़ुदा सुन ले तु इस मुसाफ़िर को कभी,
जिसने जोड़ा तोड़ा उसीने दिल,
यह ज़हर अकेले ही क्या पिया जाए!

हर शाम वह हर सहर वह मेरा हर वक़्त वह,
यूँ आँखों का जादू चल गया है,
क्या इश्क़ ए सराब़ क्या जिया जाए!

अब तो हम न घर के रहें हैं न घाट के रहें हैं,
यूँ तो बंदगी तमाशाई हो चुकी है,
अपनों को अपने घर क्या बुलाया जाए!

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