इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये डॉ0 जगदीश व्योम ने बताया है:-
हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।
हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
इस संबंध में डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गयी पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा क्षणिका ही कहना चाहिये।
वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गंभीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर संबोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जायेगा।
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।
आप पढ़ रहे हैं
हिन्दी साहित्य में स्थान बनाती जापानी विधाऐं
Poetryभारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि में हाइकु हिन्दी के साथ -साथ विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है ।